Sunday, September 23, 2012

रात के पिछले पहर

रात के पिछले पहर रोज़ वही ख्वाब सताता है
न जाने कौन सी दुनिया की सैर कराता है
सुबह होते होते जब किसी तरह होश आता है
एक कदम भी क्या ख़ाक चला जाता है

© सुधीर रायकर
रात के पिछले पहर